सन्तोष शेखर ने शोध पर आधारित ‘प्रेरक हनुमान्’ पुस्तक में हनुमान् जी के कर्मों एवं श्री राम के गुणों का वर्णन प्रेरणादायक रूप में किया है।
सन्तोष शेखर अपनी मातृभूमि ‘माँ भारती’ को इस धरा के ‘तीर्थधाम’ के रूप में देखती है तथा इनका मानना है कि जिस माता ने अपने शरीर में से हमें नन्हें-से शरीर के रूप में जन्म दिया, पाल-पोस कर पूर्णरूप बनाया, उस जन्मदात्री माँ के हम सदा ऋणी हैं। सन्तोष शेखर की माताश्री का नाम ‘भगवती देवी’ था; अत: अपनी प्रथम प्रकाशित पुस्तक ‘प्रेरक हनुमान्’ की लेखिका का नाम अपनी जगह, ‘भारती भगवती’ लिखकर अपनी माँद्वय की वंदना की हैं।
सन्तोष शेखर का विवाह सन् 1971 में 18 वर्ष की आयु में शशांक शेखर (B.Tech. Mech. I.I.T. Bombay, Batch 1970) के साथ हुआ। बी.ए. के अंतिम वर्ष की पढ़ाई एवं परीक्षा विवाह के बाद पूर्ण करते हुए सन् 1972 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। विवाह के 15 वर्ष बाद, सन्तोष शेखर ने दिल्ली विश्वविद्यालय में पुन: दाखिला लिया और एम.ए. ब्रिज कोर्स (एक साल), एम.ए. (दो साल), एम.फिल. (दो साल) कुल पाँच साल उच्च शिक्षा प्राप्त की। एम.फिल. में ‘कर्म’ पर शोध किया और ‘‘रामचरितमानस में कर्म-सौन्दर्य’’ शोध-निबन्ध (Dissentation) परीक्षा हेतु पूर्ण किया तथा 1993 में डिग्री प्राप्त की।
सन्तोष शेखर ने ‘नचिकेता’, ‘पीताम्बरा’, ‘महाराणाप्रताप’ नाटक लिखे, अनेक हास्यप्रद नाटक भी लिखे, जैसे- ‘कम्प्यूटर की गड़बड़’, ‘भगवान् विष्णु जनता की अदालत में’, ‘शादी का दलाल’, ‘21वीं सदी की महिलाएँ’। इन सभी नाटकों का मंचन हुआ।
रामायण पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय संगोष्ठियों में रामायण विषयक आलेख प्रस्तुत किए; जैसे- ‘रामायण में विज्ञान’ बरिमंघम, इंग्लैंड में प्रस्तुत किया।
सन्तोष शेखर अपने बचपन से ही सुन्दरकाण्ड का प्रतिदिन पाठ करती थी, नवरात्रों में रामचरितमानस पढ़ती थी। इस पुन:-पुन: पुनश्च पाठन करने से इन्हें हनुमान् जी के कर्मों में समाई दिव्यता का सूक्ष्म-अति-सूक्ष्म अनुभव होने लगा, जिसे ‘प्रेरक हनुमान्’ की रचना करके अनेक सहृदयों से साझा करने का प्रयास किया। ‘प्रेरक हनुमान्’ के कुल सात (7) सोपान हैं। 29 मार्च, 2023 को सोपान-1 का विमोचन ‘महाराजा डॉ. कर्ण सिंह जी’ ने किया।